दीपावली से ठीक अगला दिन गोवर्धन पूजा के लिये होता है जिसमें भगवान कृष्ण की अराधना की जाती है। लोग गायों के गोबर से अपनी दहलीज पर गोवर्धन बनाकर पूजा करते है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर अचानक आयी वर्षा से गोकुल के लोगों को बारिश के देवता इन्द्र से बचाया था।
पूजा सामग्री:
पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, खील, दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि
पूजा विधि:
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में अन्नकूट किया जाता है। इस दिन गोबर का गोबर्धन बनाया जाता है इसका खास महत्व होता है। इस दिन सुबह-सुबह गाय के गोबर से गोबर्धन बनाया जाता है। यह मनुष्य के आकार के होते हैं। गोबर्धन तैयार करने के बाद उसे फूलों और पेड़ों का डालियों से सजाया जाता है। गोबर्धन को तैयार कर शाम के समय इसकी पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद गोवर्धनजी की परिक्रमा की जाती है।
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सात परिक्रमाएं करते समय एक व्यक्ति हाथ में पानी का लोटा और दूसरे हाथ में खील लेकर चलते हैं। जल लेकर चलने वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराते हुए और दूसरे लोग जौ बोते हुए परिक्रमा करते हैं। गोबर्धनजी की नाभि की जगह पर अक कटोरी या मिट्टी का दीपक रखा जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे पूजा के समय डाले जाते हैं। बाद में इसे प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन घर में उनकी पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है।