“गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो” से 1961 में शुरू हुई भोजपुरी फिल्मों की कहानी आज विस्तृत हो चुकी है | सुजीत कुमार, पद्मा खन्ना जैसे जहीन कलाकार की पहचान भोजपुरी से ही रही, यह भाषा इतनी शक्तिशाली है कि बिहार, यूपी ही नहीं बल्कि देश के कई शहरों के सिंगल स्क्रीन थियेटर को बचा कर रखी है | भोजपुरी सिनेमा का मुख्य क्षेत्र बिहार है, बिहार के अलावा यह सिनेमा उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी अपनी खास संवाद अदायगी की शैली के कारण पसंद किया जाता है |
हर पांच-सात साल के अंतराल पर भोजपुरी फिल्मों का सुनहरा दौर आता है फिर चला जाता है | जैसे हिंदी, बंगाली या फिर पंजाबी फिल्में हैं वैसे स्थायित्व इसमें नहीं रहता है | इसलिए इस भाषा के अभिनेता गायन या स्टेज शो भी करते रहते हैं |
हाल के दिनों में भोजपुरी सिनेमा के विकास में वृद्धि हुई है | भोजपुरी भाषा की फिल्मों में काम करके अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस भाषा के कलाकारों का कहना है कि समृद्धि के मामले में इस भाषा का अलग ही स्थान है | यह भाषा और इसकी फिल्में तमाम झंझावातों को झेल कर भी सुपर स्टार को पैदा करती रहती हैं |
इसी भोजपुरी सिनेमा में ऐसे भी नाम हुए हैं, जिन्होंने लोकप्रियता के सोपान पर अपनी अहम पहचान बनायी है और यह अब राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं | भोजपुरी के बिना हिंदुस्तान का सिनेमा पूरा ही नहीं हो सकता है. जहां तक भोजपुरी फिल्मों की बात है, ये भाषा इतनी सरल है कि इसमें बनने वाली फिल्में लोगों को अपने अंदर के जीवन जैसी लगती है |
इसमें जो भी कलाकार रोल निभाता है, वह हिट हो जाता है. लोग उसे हाथों-हाथ ले लेते हैं, 1981 में धरती मइया फिल्म से अपने फिल्मी कैरियर का आगाज करने वाले कुणाल कहते हैं, हिंदी फिल्मों में कई ऐसे नाम हैं जो भोजपुरी से ही पहचाने गये |